सोमवार, 30 दिसंबर 2013

सफलता

सफलता 


मुझे मालूम है 
तुम आओगी मेरे पास 
स्वयं को खोजने 
क्यो कि मेरे बिना 
तुम्हारा अस्तित्व  ही 
कहाँ है ,
इस जहां में 
बस 
इसी के सहारे 
निश्चिन्त सा 
कर्म पथ पर 
बैठा रहा हूँ ,
रहूंगा, कि,
तुम आओगी 
छोड़ जाओगी कहाँ 
इस वीराने  में 
मुझे। 

मैं जानता हूँ 
तुम ले रही हो परीक्षा 
धैर्य की  मेरे 
यह सही ,कि मैं अधीर हूँ 
जल्द पाना चाहता हूँ ,
तुम्हे 
इसलिए ही सदा 
खोता आया हूँ 
और तुम दूर ही दूर 
रहती आई हो 
मुझसे 

पर ,
यह भी सत्य है 
अटल 
कि , तुम भी 
लौटोगी मूल की तरफ 
बरगद कि लटो  की तरह 
क्यूँ कि तुम रही हो 
युगो से ,
मेरे सीने  में दफ़न 
धड़कनो की तरह 
मेरी,
रह न सकोगी 
एकाकी , बिछड़ कर 
मेरी धड़कनो से 

अब तो प्रतीक्षा है 
बस उसी घडी की 
जब फिर से सन्नाटा 
बोलेगा 
ले तेरे सात सुरो की बोली 
गमकेंगी जब 
हर दिशाएँ 
तेरे यौवन पुष्प की 
महक से 
मेरा जीवन भी तब 
चहकेगा 
कटेगी हर ,
प्रतीक्षा की घडी 

        उमेश कुमार श्रीवास्तव  २६. ०१. १९९१ 


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