मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नया वर्ष

नया  वर्ष 


आज के गोबर ने 
लगभग बुझ चुके 
कचरे के ढेर के नज़दीक
खिसक
अपने चिथडो को खुद से
लपेटते हुए
लड़ते हुए 
हड्डियो को सालती
सर्द हवाओं से
अपने हाथो से खाली पेट को दबा
सिकुड कर गठरी सा बनाते हुए
चेहरा उठा पूछा
बाबू..!
ये नया वर्ष क्या होता है ?
बाबू ने 
पसरे हुए 
गर्म राख की ढेर पर
ऊंघते हुए से
दिया जबाब
जिस दिन सुबह
होटलो, ढाबो बड़ी हवेलियो के बाहर
कूडो के ढेर पर
पेटभर
खट्टे मीठे चटपटे हर तरह के
खाने की 
अनबूझ चीज़ें मिलें
जिनके लिए 
कुत्तो से झगड़ना ना पड़े 
उस दिन को 
नया वर्ष कहते हैं
बेटा अब सो जा
कल ही नया वर्ष है
  
       उमेश कुमार श्रीवास्तव

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