बुधवार, 4 दिसंबर 2013

आधुनिक " निर्वाण "

आधुनिक " निर्वाण "

शिक्षित हो मानव
शायद, 
कुछ ऊँचा उठ जाता है
मानवता से, समाज से
परिवार से,
रिस्तो नातो से
यह अलग है,कि
उसका विवेक सो जाता है
वह स्वयं तक सीमित हो जाता है

अपने चारो ओर
एक घेरा बना लेता है
स्वार्थ का,
उसे चेतन, अचेतन
सभी दशाओं में
दिखाई पड़ता है
स्वयं का स्वार्थी,
आनंदमयी संसार

दूसरों के दुःखो का अहसास
छू तक नहीं जाता है
क्यूँ कि वह इनसे भी ऊपर
वर्तमान "निर्वाण" का लक्ष्य
प्राप्त कर चुका होता है
वह जो अपने तक
सीमित
हो चुका होता है

               उमेश कुमार श्रीवास्तव

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