बुधवार, 4 सितंबर 2013

उमेश के दोहे


 
उमेश के दोहे

कर्म, कर्म से सौ गुणी, ध्यान, भाव औ भक्ति 
ध्यान लगा के कर्म करो भाव लगा के भक्ति

संशय तूहि बिसारि के कीजै रघुपति कारि
रघु की कृपा अपारि है पूरन करिहै कारि

चंचल तो है मन सदा चंचल काहे होय
राम कृपा जब होएगी मोह जाएँगे खोए

राम राम कह राम कह ढूँढा चहूँ दिस राम
अंतःपुर को ना लखा जहाँ बसै श्रीधाम

अंतःतम पोषित किया बाह्य किया उजियार
ऐसे नर ते पशु भले जिएं तो इकसार

कहाँ कहाँ मैं ना फिरा ढूँढ थका चहुं ओर
राम रमईया रम रह्या चित में बन चित चोर

गौरव गरिमा गारि के धरते चरनन माथ
याचन से मरव्यो भलो गरिमा जाए साथ..... I

                                                 ...उमेश श्रीवास्तव....

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