रविवार, 8 सितंबर 2013

पिता जी के देहावसान पर उनकी स्मृति मे.




भीग गई थी पलकें,
अश्रु,
रह रह मचल रहा था
उद्वेलित मन गह्यवरता खो
ले आज हिलोर रहा था

सभी इंद्रियाँ पाषाण हुई ज्यूँ
तोड़ सभी परिभाषाएँ
रुधिर जम उठा धमनियो में
अब कहाँ डोल रहा था

भटक भटक कर तुम पर ही
टिक जाता था चिंतन
भूत भविष्य से , पल पल मुझको
जब जब तोल रहा था

हर पीड़ा पर मुझको तुमने
सिखलाया था हँसना
इस क्रूर घड़ी पर ,हँस ले खुल कर
दुर्भाग्य बोल रहा था

चिंताओं से घिरा हुआ पर
निश्च्छल लिए मुस्कानें
नज़रो के सम्मुख वह चेहरा
जब जब डोल रहा था

चले गये तुम चुपके से
बिना कहे कुछ बातें
क्या कारण था इस निष्ठुरता का
मन हुलस पूंछ रहा था

इन धमनिओ में रक्त तुम्हारा
इस पिंजर में जीवन
यह समझ-बूझ कर भी जब तुम को
चहूँ दिश ढूढ़ रहा था

तुमको रेखांकित करता असफल
अपने मस्तिष्क लहर से
व्याकुलता की लहरो में क्षण क्षण
जब मैं डोल रहा था


भीग गई थी पलकें,
अश्रु,
रह रह मचल रहा था
उद्वेलित मन गह्यवरता खो
ले आज हिलोर रहा था


   उमेश कुमार श्रीवास्तव
    दिनांक:२१.०७.१९९१

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