बुधवार, 18 सितंबर 2013

नर्मदे , शत नमन



हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन

स्नेहिल हिय , पुलकित गात
गह्यवर्ता की क्या बिसात
स्पर्श तेरा है वंदन
महक रहा चंहु दिश चन्दन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन

आँचल की तेरी वो सरकन
कलकल ध्वनि में उन्मोदित मन
शान्त मूर्ति की वह चितवन
तेरे चरणों का शत चुम्बन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन

आत्म क्षेत्र का कर उल्लंघन
विश्रंखलित हुआ जाता जीवन
भर आत्म शक्ति आलोक प्रमोद
दे सदगति , दे सदचिन्तन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन

भीगी पलकें भीगे ये नयन
करते तुझको अर्घार्पण
भटकाव भरा यह जीवन
शरणागत अब , दे नव स्पन्दन
हे , नर्मदे
शत नमन
कोटिशः वंदन

                उमेश कुमार श्रीवास्तव


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें