गुरुवार, 5 सितंबर 2013

दिलजले शेर


फटा दिल, शैलाब अश्को का बहा
परवरदीगार ! बेमुरौवत रहनुमाओ की सज़ा
क्यू दी तूने अपने खिदमतगारो को


हर बार सोचता हू की दिल की बात ज़ुबान पे ना आए
कम्बख़्त चेहरा ज़ुबान बन कह देता हर राजे दिल जमाने से




चंचल शोख निगाहों से ना तीर चलाओ ये जालिम
दिल के टुकड़ों पर पग रख यूँ, ना मुस्काओ ये जालिम........उमेश...



ज़लज़ला हैं यादें वजूद तक हिला देती है ये,
सफ़र है जिंदगी का जब तक आती हीरहेंगी ये. ...उमेश श्रीवास्तव...
..

चुपके से हमने उनको दिल के करीब रख लिया
बापरदा रखा था जिन्होने, खुद को खुद ही से. अब तलक......उमेश श्रीवास्तव.....


फटा दिल, शैलाब अश्को का बहा
परवरदीगार ! बेमुरौवत रहनुमाओ की सज़ा
क्यू दी तूने अपने खिदमतगारो को.....उमेश श्रीवास्तव.....

हर बार सोचता हू की दिल की बात ज़ुबान पे ना आए
कम्बख़्त चेहरा ज़ुबान बन कह देता हर राजे दिल जमाने से .....उमेश श्रीवास्तव..

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