शनिवार, 7 सितंबर 2013

माँ भारती की पीड़ा


माँ भारती की पीड़ा



इस विपति की बेला को देखो
माँ झोली ले कर आई है
छः दशक की पीड़ा में
अपनी सब कांति गवाँई है



मुख से वाणी ना फूट रही
कंठ तलक पथराया है
चिथड़ो सम वसन बदन पर है
पैरो में छाला आया है

इस दीन दशा में हमसे मां
कुछ आश लगा कर आई है
हमने तो भुला दिया उसे
चल द्वार स्वयं ही आई है

गर पढ़ सकते पीड़ा नयनो की
तो पढ़ अर्थ निकालो तुम
माँ माँग रही क्या द्वारे पर
हो सके भीख सम डालो तुम

थी जंजीरो में जब जकड़ी
तुमने ही प्राण गँवाए थे
ललनाओं के हाथो ने भी
अपने सर्वश्व चढ़ाए थे

तब तो तुमने सर्वश्व सौप
माँ को खुशियो में तौल दिया
फिर हुआ आज क्या इन वर्षों में
स्वारथ में माँ को भुला दिया !

यह दीन दशा की है किसने
क्या यह भी पूछ  नही सकते
अपने स्वारथ को क्षणिक त्याग
माँ  कह, पुकार नही सकते

धिक्कार तुम्हे गर अब भी तुमने
माँ को द्वारे से दुद्कार दिया
माँ तो माँ है, सह लेगी, पर
समझो माँ को तुमने है मार दिया


        उमेश कुमार श्रीवास्तव

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