सोमवार, 30 सितंबर 2013

तुम्हारा स्पर्श

तुम्हारा स्पर्श


तुम्हारा स्पर्श
तुम्हारा संवेदनाओं भरा,
अहसासों में किया,
हर स्पर्श
गुदगुदा जाता है
मन उपवन में
इक नया गुच्छा, फूलों का
गमका जाता है

तुम्हारा संवेदनाओं भरा,
अहसासों में किया,
हर स्पर्श
डुबो देता है मुझे
ज़ुल्फो के श्याह अंधेरो में
लिपट जाता हूँ , तेरी
चंदन सी काया से
सर्प बन,शीतलता की खोज में
क्षण भर में,
तुझमें खो
मन तृप्त हो जाता है

तुम्हारा संवेदनाओं भरा,
अहसासों में किया,
हर स्पर्श
नये जीवन का
प्रात ले आता है
अरुण किरणें जिन पर
पसरी हों
ऐसी सरिता तीर
मन साथ चला जाता है
हर पल हर क्षण
उन्माद जगा जाता है

तुम्हारा संवेदनाओं भरा,
अहसासों में किया,
हर स्पर्श
परमानंद का अहसास
करा जाता है
दुख का हर सोपान
हर भेद भुला
सुख सागर में
डूब जाता है
भटकता अनवरत चारो दिशा में
मन
एकाग्रता पा जाता है

तुम्हारा संवेदनाओं भरा,
अहसासों में किया,
हर स्पर्श
तुम्हारी पहचान
बता जाता है
इक अक्स सुंदर
जिससे सदियों से मेरा नाता है
चुपचाप आँखो में
उतर आता है
तुम्हारा संवेदनाओं भरा,
अहसासों में किया,
हर स्पर्श
गुदगुदा जाता है

         उमेश कुमार श्रीवास्तव


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