गुरुवार, 19 सितंबर 2013

व्यथा हिय की



मैं रोता हूँ या मैं हँसता
आज मुझे ये याद नहीं
कल रोता था या था हँसता
ये भी मुझको याद नहीं। .

सुख की किरण मिली थी कोई
इस पड़ाव तक आते आते
तम में खोई इन आखों को
ऐसी    कोई    याद      नहीं। .

उस पड़ाव से चला था जब मैं
थी इक गठरी, कुछ अनुभव की
सुख था,दुःख था , या दोनों था
यह भी बिलकुल याद नहीं।

यहाँ से आगे कहाँ है जाना
या तम में होगा खो जाना
जाना है तो किस पथ जाना
आया अब तक याद नहीं।

कहाँ से आया ? कहाँ हूँ आया ?
कहाँ टिका हूँ ?कहाँ है जाना ?
भटक रहा हूँ इन प्रश्नों  में
उत्तर  आता  याद  नहीं।

                उमेश कुमार श्रीवास्तव 

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