रविवार, 8 सितंबर 2013

ग़ज़ल


ग़ज़ल


सियासत के रंग ये ज़रा देखिए
मुखौटे पे मुखौटा  ये चलन देखिए

कातिल ही देखो रहनुमा बन रहे
ये जमाने का उल्टा चलन देखिए

कितनी तड़प है उनके जिगर में
मौत बाँट उनका रुदन देखिए

चुस रहे जिस्म देखो मेहनतकसो  के
पी रहे जो लहू वो हमवतन देखिए

ऐ रब आज कैसा मंज़र हो रहा ये
ये माँ के वसन का हरण देखिए

मोहमाया में लिपटे सभी रहनुमा ये
महाभारत का करते जतन देखिए

               उमेश कुमार श्रीवास्तव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें