सोमवार, 30 सितंबर 2013

ग़ज़ल



विस्मिल हुआ जाता है दिल,न इस कदर इठलाइए
मरीज-ए-जुनू पहले से था,और न उसे तड़पाइए

सर नगू है इस कदर , गर्दन भी दुखने लगी
मेरी इस तस्वीर पर कुछ तरस खाइए

प्यासा खड़ा हूँ चस्मे हाला को तेरी
मीना - ए- लब से इन्हे मुझको पिलाइए

मानता हूँ हुस्न की हो इक ज़िंदा मिशाल
इश्क भी है चाशनी ज़रा चख जाइए

मौत को फुरसत कहाँ जो हाल पूछे आ मेरा
'साकी' ज़रा मेरे लिए फुरसत से आइए

                                   उमेश कुमार श्रीवास्तव

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