गुरुवार, 5 सितंबर 2013

ग़ज़ल

ग़ज़ल

रुक गई है ऩज़र तुम्हे देख कर
यूँ न अलको को अपनी धुला कीजिए

आईने की मुझे अब ज़रूरत नहीं
न पलको को यूँ बंद किया कीजिए

ये क्या बात है हो रहे क्यू गरम
है खता क्या हमारी बता दीजिए

तेरा भीगा बदन है सुलगने लगा
आ पनाहो में मेरी जगह लीजिए

है शर्मो हया की ज़रूरत ही क्या
लग गले से इन्हे हटा दीजिए

..उमेश श्रीवास्तव...29.03.1992






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