रविवार, 8 सितंबर 2013

दर्दे दिल -४




१ शमा की नियति यही , रात दिन जलती रहे
    रौशनी देती रहे , खुद को अंधेरे में रख

२-आहें भरना मेरी फ़ितरत नहीं थी
    दिल लगा के तूने यह भी सिखा दिया

३-गेसुओं की महक से महका चमन ये सारा
    दिल भी हुआ बेचैन यूँ लेता नहीं किनारा

४-हर पल उनकी याद में घुट-घुट के मरता रहा
    मगरूर हैं वो इस कदर, ख्वाबो में भी ना आए कभी

५-न खुदा से है शिकवा न नाखुदा से शिकायत
     जब कश्ती ही है टूटी, क्यूँ कर न डूब जाए

६-अश्क आँखो के ना जाने कहाँ खो गये
     जी चाहता रोने को, रो नही पाते

७-कुछ तो कर अब ,ऐ परवर दिगारे आलम
    जिंदगी कटती नही बिन दिदारे यार के

८-जर्द लब भी अब मेरे हो चले मयखाना
    जब से उनके लब मेरे लब से छू गये

९-अब तक तो ना झुके थे आफताब के आगे
    महताब सा पा तुझे सर  नगूं कर लिया

१०-नज़रो की शोख तब्बस्सुम जब रुखसार पे उतरी
      शर्मो हया से उनने झट परदा गिरा लिया

                           उमेश कुमार श्रीवास्तव

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