शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

ग़ज़ल



चुपके चुपके यूँ तेरा ख्यालों में आना ठीक नहीं
अंजुम में आओ तो अच्छा, ख्वाबों में आना ठीक नहीं

मासूम जवानी सफ्फाक बदन मरमर में तरासा है तेरा
यूँ हाथ उठा अंगड़ाई ले , दीवाना बनाना ठीक नहीं

शोख़ तब्बस्सुम चाह लिए गुमसुम सी अधर की पंखुड़ीयाँ
बाधित ना करो इस यौवन को , अवरोध लगाना ठीक नही

कैसे ना कहूँ विस्मिल हूँ मैं, तेरी हर कातिल चितवन से
उठती नज़र से तीर चला , यूँ नज़रें झुकाना ठीक नहीं

मैं तो प्यासा था प्यासा हूँ , बैठा हूँ मय की आश लिए
मय की प्रतिमूरत हो जब तुम , यूँ आ छिप जाना ठीक नहीं


                             उमेश कुमार श्रीवास्तव 

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