शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

दर्दे-दिल

१ ढूँढने से मिलते नहीं साकी रफ़ीक
  मुक्कद्दर में हों तो खुद ही ढूढ़ लेते हैं

 २ तितलियाँ फिरने लगी सड़को पे जब से
   लगता की गुलशन बन गया है शहर सारा

३ चश्में से लुढ़कते ये अश्को के दो कतरे
   दिल की बात बे ज़ुबाँ कह देते करीने से

४ बद-इन्सानियत की राह भी कितनी है सुकून बख्स
   चलते हैं आँख मूंद लोग लगती नहीं ठोकर

५  इस बुतनशी की सरकशी तो देखिए जनाब
    सरेमहफ़िल किस कदर अंगड़ाइयां ले रही है

६  लब पे छाले आए , आए फिर फूट गये
    मेरे नाले उस तलक आज भी पहुँचे नहीं
 
७  इस इश्क की मीना में गम की मय तो डाल
    देखें ज़रा साकी कहते किसे बहकना

८  मेरे कदम दर कदम इक और भी कदम है
    पर मालूम कर सका ना किसके ये कदम हैं

९   हर आश मेरी प्यास-ए-दरस लिए है
     पर उनकी शख्सियत तो,है भूल जाने की

१०   आता नहीं इश्क का आलिफ भी इन्हे साकी
     ये हुस्न-ए-हाला हैं ज़रा दूर ही रहना

११   इस हुस्न की महफ़िल में हम आज हैं आए
     देखें ज़रा हुस्न-ए-मदिरा किसे कहते

१२   खो दिया है दिल मैने जानम तेरी राहों में
      चाहे तो ठुकरा देना चाहे गले लगा लेना

१३   इस कदर बेचैन ना हो ऐ मेरे मासूम दिल
      बिजलियाँ गिर गिर के खुद फ़ना हो जाएँगी
                                   

                                उमेश कुमार श्रीवास्तव

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